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गोविन्द पंडित |
बादल और अमृता की
शादी खूब धुम धाम से हुई थी. ऐसी जोड़ी बिरले ही लगती है. दोनो की जोड़ी मानो कामदेव
– रती की जोड़ी थी. अमृता का अंग अंग जैसे सांचे में ढ़ली हो. गोरा बदन, सुगठित
मुखड़ा, हिरणी शावक सी चंचल नैन, मुखमंडल पे मुस्कान लिए सबको मोहित कर देती. सुंदर
ही नहीं वह गुणवती भी थी. हाल ही में बी-टेक की पढ़ाई पूरी की थी.
बादल भी कम कहां था.
हट्ठा-कट्ठा सजीला नौजवान. बी-टेक की पढ़ाई पूरी कर दो वर्षों से किसी कम्पनी में
सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में कार्यरत था. ऐसी जोड़ी गांव में लग पाना किसी अजूबे
से कम नहीं था. दूर दूर के गांवों से लोग जुटे थे इस अनौखी जोड़ी की झलक पाने. बड़े
बुजुर्गों ने निष्कपट भाव से इस जोड़ी को आशीष दिये थे.
यह शादी इलाके भर
में चर्चा का विषय रहा था. बादल के घरवालों ने भी खूब दरियादिली दिखाई थी. दहेज
में फूटी कोड़ी तक नहीं ली थी. भला ऐसी बहू पाकर कौन धन - दौलत की परवाह करे. बादल
की शादी के लिए उनके घर कई धन कुवेर भी पहुंच चुके थे. कई भाति से प्रलोभन दिए पर
बादल के पिताजी भी पक्के इरादे के इंसान थे. साफ़ कह देते – देखो जी ! धन दौलत तो
हाथों का मैल है, इसका आना जाना तो लगा रहता, पर जो चीज जिन्दगी भर की है उससे
सौदाबाजी कैसा ?
बादल के पिताजी का
गांव में ही अच्छा खासा व्यवसाय था. रूपये पैसों की कमी न थी. समाज में उनके
दादाजी का खास दर्जा था. इस शादी से उनकी छाती और चौड़ी हो गई थी.
बादल दिल्ली में जॉब
करता था. शादी के कुछ दिनों बाद पत्नी सहित दिल्ली आ गया. जिन्दगी खुशहाल थी. नई
नवेली दुल्हन, अच्छा खासा पैकेज, कम्पनी में अच्छा रुतबा और क्या चाहिए. कुछ ही
दिनों में अमृता को भी उसी कम्पनी में जॉब दिला दी. अब दोनों का शेड्युल कुछ
व्यस्त ज़रूर हो गया था, पर दोनों के बीच प्यार दिन दुना रात चौगुना बढ़ रहा था.
दोनों अलग - अलग परिवेश में पले बढ़े थे. शादी के पूर्व एक दूजे को समझने का वक्त
भी नहीं मिल पाया था, पर शादी के बाद आपसी समझ बूझ से इस रिश्ते को काफी मजबूत बना
लिया था. नए सपने, नई अरमान लिए वे बिन्दास जी रहे थे, न शिकवा, न शिकायत, जी भर
जी लेने का मकशद. बादल की आंखों में सपना था – आगे बढ़ने का, कुछ कर दिखाने का.
एक दिन उसने कहा - अमू
! सुन.
अमृता - सुनाइए.
बादल – तू देख लेना,
एक दिन मैं इस कम्पनी का सीएमडी बनूंगा.
अमृता – कम्पनी का
हो ना हो, पर मेरे दिल का सीएमडी ज़रूर बनेंगे.
बादल – आइ’म रियली
सिरियस ! बट, तूझे हमेशा मजाक सूझता है.
अमृता – आइ”म अलसो
सिरियस. जाइए जनाब ! जल्दी नहाइए, नश्ता तैयार है. ऑफिस के लिए देर हो रही है.
बादल सरपट बॉथरुम की
ओर भागा. दोनों नाश्ता कर ऑफिस के लिए रवाना हो गए.
यूं ही साल भर बीत
गया, पता भी न चला.
बादल के माता पिता
भी काफी खुश थे. उनकी मनचाही मुराद मानों पूरी हो गई थी. कई देवस्थलों पर माथा
टेके,, गंगा स्नान , तीर्थ - व्रत सब किए. बीच बीच में कभी वे दिल्ली आकर बहू - बेटे
से मिल जाते. अब उनकी बस एक ही कामना थी, एक नन्हे से मेहमान के आगमन की.
अमृता के पिता जी
फौज में थे. लम्बे समय तक फौजीदारी की. अब रिटायर्ड होकर एक कम्पनी ज्वाइन कर लिया
था, पर अब भी फौजी मिजाज नहीं बदला था. घरवाले उनसे थर - थर कांपते थे. किसी की
क्या मजाल जो उनके सामने मुंह खोल सके. पूरे घर पर तानाशाही शासन था उनका. आस पड़ोस
वाले भी उनकी ऐंठी से परेशान रहते. ‘न पत्थर सीझे, न मूढ़ बुझे’ की कहावत को वह
पूरी तरह चरितार्थ करता था. कभी - कभी उसने अपने दामाद पर भी अपनी फौजीदारी रौब
दिखाने का प्रयास किया, पर बादल उसे इग्नोर करता गया.
अपने दामाद द्वारा
इग्नोर किया जाना उसे खटकने लगा. बेटी को बहकाने का प्रयास किया. अमृता को भी
पिताजी की ऐसी दखलअंदाजी पसन्द न थी, पर विरोध करने की हिम्मत भी न थी. आज की युवा
पीढ़ी लकीर के फकीर नहीं होते. उनकी सोच, नज़रिए काफी परिपक्व होते है. स्वाभिमान के
साथ जीना - मरना चाहते हैं. ऐसे में किसी
की अनावश्यक दखलअंदाजी उसे बर्दास्त कहां ? चाहे वे अपने ही क्यों न हो.
एक दिन अमृता के
पिता जी ने शराब के नशे में दामाद को फोन किया. उसे धमकियां देने का प्रयास किया.
पर, बादल भी स्वाभिमानी था. उसे आड़े हाथ लिया. खूब सुनाया और दौबारा ऐसी औछी हरकत
न करने तक की हिदायत दे डाली. बेचारी अमृता ससुर दामाद के भयंकर वाक्युद्ध से थर -
थर कांप रही थी. मर्दों की क्या मुछों की ताव, रिश्तों में मधुरता तो आखिर औरतें
ही लाती हैं.
अमृता पिताजी के
स्वभाव से वाकिफ थी,. उसे समझाना यमराज के मुख से वापस लौटने के बराबर था. पति को
ही समझाना उचित जंचा. बोली – बाबूजी ऐसे ही हैं, उनसे आपको नहीं उलझना चाहिए.
बादल (गुस्से में) –
मैं....मैं.....उलझ रहा था. ? उनकी लेंगवेज नहीं देखी. दामाद से ऐसी लेंगवेज में
बात करनी चाहिए ?
अमृता गिड़गिड़ाई –
प्लीज बादल ! समझने का प्रयास करो. वो आदत से लाचार हैं. आप समझदार हो.
उसी समय अमृता के
मोबाइल पर कॉल आया. पिताजी ने उसे शीघ्र अपने पास आने को कहा. अमृता की मां ने उसे
काफी समझाने का प्रयास किया. पर उसके सामने किसी की एक न चलती. वह बिस्तर पर जाकर
फूट - फूटकर रोने लगी. उसे अपने पति का स्वभाव पता था. अमृता की दुविधा और बढ़ गई.
एक बार ख्याल आया पिताजी से उलझ लूं , पर हिम्मत जवाब दे गई.
बादल से कहा –
पिताजी का कॉल आया था. कुछ दिनों के लिए मुझे बुलाए हैं.
बादल – क्यों ?
अमृता – पता नहीं.
बादल – चली जाओ.
बेटी उसी की है, मैं कौन हूं ?
अमृता खिझती हुई –
बादल ! आप समझने का प्रयास क्यों नहीं करते ? मैं परिस्थिति को सुलझाने का प्रयास
कर रही हूं और एक आप हो, जिद्दी बने हुए हो.
बादल (गुस्से से) –
हां, मैं जिद्दी हूं और तुम खूब समझदार हो, आखिर बेटी उसी की है, कुछ तो असर पड़ेगा
ही.
यह बात अमृता को चुभ
गई. औरतें भूख सह लेगी, सारे दुखों को सह लेगी पर अपने पुरखों की निंदा सह नहीं
सकती. आखों से आसूं की धार बहने लगी.
बोली – क्या कहते हो
?
बादल – मैं कौन होता
हूं तुम्हें रोकने वाला. जो मर्जी करो.
बादल से उसे ऐसी
उम्मीद न थी. कुछ पल के लिए ठिठक गई. फिर कुछ विचार कर सामान समेटा. बादल से बोली –
अपना ख्याल रखना, बाबूजी गुस्से में है, समझाकर जल्दी लौट आऊंगी. मेरी लीव डाल
देना.
बादल के पांव छूकर
चल पड़ी.
अमृता बाबूजी के पास
पहुंच तो गई, पर उनके गुस्से को देखकर सप्ताहभर इस बारे में बात करने की उसे
हिम्मत न हुई. वक्त गुजरता गया. इधर बादल भी दम्भ लिए बैठा था, खुद गई है, खुद ही
आएगी. उससे एक बार भी सम्पर्क करने की जरुरत नही समझी. ऊपर से भले ही दम्भ लिए था,
पर मन ही मन खूब पछतावा हो रहा था. खुद पर उसे खीझ आ रही थी. आखिर इसमें अमृता क
क्या दोष. मैनें नाहक उसका दिल दुखाया.
उधर अमृता के पिताजी
को भी खुद को सही साबित करने का अच्छा मौक मिल गया. कहा – देख लिया कितना दम्भी
है. तू कहती थी तुझसे खूब प्यार करता है, अब तक एकबार हाल तक नहीं पूछा. सब छलावा
है, सब दिखावा है उसका.
अमृता निरुत्तर होकर
रह गई. उसे भी बादल की इस कठोरता से गुस्सा आने लगा था. दिन गुजरते गए पर, न बादल
ने अमृता की खोज ली और न अमृता ने उसकी. इसी तरह साल भर गुजरने को चला. धीरे धीरे
अमृता के जीवन में सौरभ क आगमन हुआ. दिखने में वह सुंदर, सजीला था. खास यह थी कि
सौरभ उनके पिताजी के एक दोस्त का बेटा था. अमेरिका से पढ़कर वापस आया था. दोनों के
बीच घनिष्टता बढ़ने लगी. अमृता के पिताजी भी कुछ ऐसा ही चाहते थे. कुछ ही दिनों में
दोनों विवाह के लिए तैयार हो गए. समस्या एक थी. बादल से तलाक की.
तलाक का पेपर एकदिन
बादल के पास पहुंच गया. पेपर देखते ही बादल के पांव तले जमीन खिसक गई. उसकी दशा
व्याधी के तीर से घायल होकर जमीन पर गिरे पक्षी की तरह हो गई. वह आत्मग्लानि से भर
गया. आंखों से आंसू हिलोरें लेने लगे. मुख से शब्द नहीं फुटते. अपने मां - बाप के
साथ अमृता के घर पहुंच गया. क्षमा याचना की. खूब गिड़गिड़ाया, अपने प्यार की दुहाई
दी. उनके मां - बाप ने भी खूब मिन्नतें लगाई, पर सब व्यर्थ.
अमृता बस इतना बोली –
आइ’म सॉरी ! इट्स सो लेट.
और वह घर के अंदर
चली गई.
लाचार होकर वे तीनों
वापस आ गए. घर की सारी खुशियां लूट चुकी थी. घर पर शमशान सा सन्नाटा पसर गया था.
किसी को न खाने की सुध रहती और न जीने की. बादल अंदर ही अंदर घुट रहा था. इस दशा
के लिए वह खुद को दोषी मान चुका था. अपनी घुटन से कहीं ज्यादा उसे अपने मां - बाप
की घुटन खलती. क्या सपने थे, क्या अरमान बुने थे, सबको मानों सांप सुंघ गया हो.
अगले दिन तलाक था.
दोनों पक्षों को कोर्ट में पहुंचना था. अमृता की सहेली नीतु आई थी उससे मिलने.
अमृता ने बड़ी लापरवाही से कहा – यार नीतु ! कल बादल से मेरा तलाक है. चल अच्छा ही
हुआ, उससे कहीं हैंडसम, रीच लड़का से शादी करने जा रही हूं.
नीतु यह सुनकर अवाक
रह गई. बोली – अमू ! तू तो कहती थी बादल तुमसे बहुत प्यार करता है, तो फिर
अचानक....?
नीलम की बात बीच में
ही काटते हुए वह बोली – छोड़ यार ! गड़े हुए मुर्दे क्यों उखाड़ना चाह रही है. पापा
से कुछ अनबन हुआ था, तो बात यहां तक आ पहुंची. खैर, सौरभ भी रईस घराने से है.
नीतु उनके पिताजी के
स्वभाव से भलीभांति परिचित थी. मसला समझने में उसे देर न लगी. दोस्त के नाते उसे
एकबार समझाना उचित जंचा. वह बोली – अमू ! तू अब बच्ची नहीं रहीं. खुद का भला - बुरा
समझ सकती है. शादी - विवाह गुड्डे -
गुड्डियों का खेल नहीं है, जिसे जब चाहो बदल डालो. जन्म – जन्मांतर तक निभाने वाला
पावन रिश्ता है यह. एक बार जिससे नेह की डोर जुड़ जाती है, उसे तोड़ी नहीं जाती,
प्यार और समर्पण से मजबूत बनाई जाती है. रही बात सौरभ की तो क्या गारंटी है कि वो
तुम्हें खूब प्यार करेगा, खुश रखेगा. कल यदि उससे तेरे बाप की नहीं बनी तो क्या
तुम दूसरा सौरभ ढूढ़ोगी ? बताओ ? जवाब दो ? देख, पागल मत बन, बादल का दिल टटोल के
देख, क्या अब भी वो तुम्हें उतना ही प्यार करता है. नेह की डोर मत तोड़ो, जीवन तबाह
हो जाएगा.
नीतु तो चली गई, पर
उनकी बातें अमृता को अंदर तक झकझोर डाली. कानों में नीतु की बात बार – बार गूंजने
लगी.- ‘नेह की डोर मत तोड़ो.’ बादल का गिड़गिड़ाता हुआ चेहरा उनकी आंखों के सामने बार
– बार आने लगा. वह जानती थी कि आज भी बादल उसे उतना ही प्यार करता है. अमृता मानो
सपने से जग गई. उसे खुद से नफ़रत होने लगी. बादल के लिए प्यार का सैलाब उमड़ पड़ा दिल
में. जी करता उड़ कर चली जाऊं बादल के पास, पर कुछ बंदिशें जकड़ लेती बेड़ी बनकर.
सुबह पिताजी से बोली
– पापा ! तलाक से पहले मुझे कुछ दिन सोचने - समझने का समय दीजिए.
पिताजी – पागल हो गई
हो क्या ? सौरभ के घर शादी की पूरी तैयारी हो गई है, डेट फिक्स है. दो दिन बाद तू
महलों की रानी बन जाओगी, और क्या चाहिए. चलो जल्दी, कोर्ट के लिए तैयार हो जाओ.
अमृता की बेचैनी
बढ़ने लगी. वह पूरी तरह भावनाओं की भंवर में फंस चुकी थी. इसके लिए वह खुद
जिम्मेदार थी. आखिर सौरभ से शादी के लिए उसने खुद हामी भरी थी. तलाक के लिए भी
हामी भरी थी. चाहती तो बादल के पास बेहिचक वापस जा सकती थी. लेकिन, अब पानी गले से
ऊपर चढ़ गया था. केवल डुबना शेष था.
कोर्ट में बादल की
एक झलक ही मिल सकी. सबका चेहरा मुर्झाया था, मानो हरी फसल पर ओलापात हो गया हो.
तुरंत पिताजी ने ओझल कर दिया था उनकी नज़रों से. वह बार - बार कहती रही कि मुझे सोचने
- समझने का कुछ वक्त चाहिए पर, उनके पिताजी ने यहां जबरन उससे तलाक के कागज़ातों पर
हस्ताक्षर ले लिए. कुछ भी उलटा सीधा न करने की सख्त हिदायत भी दे डाली.
दोनों पक्ष जज के
सामने उपस्थित थे. बादल व उनके परिवार वालों की दशा जुए में अपना सर्वस्व हारे हुए
जुआरी की तरह थी. अब भी उनके मन में अमृता को वापस पाने की उत्कंठ लालसा थी. सबकी
आंखें डबडबाई हुई थी. मन क्रंदन कर रहा था. बादल की दशा ओर भी दयनीय थी. मन कलप
रहा था. अमृता की ओर तृषित नेत्रों से देखा. दिल करता जज से गुहार लगाऊं मुझे
अमृता वापस लौटा दीजिए जज साहब. इसके बगैर मैं जी नहीं सकता. पर, वाणी जवाब दे
जाती.
जज साहब ने पहले
बादल से इजहार लिया. पूछा – क्या आप स्वेच्छा से अमृता से तलाक चाहते हैं ?
अमृता की ओर करुण
भाव से देखा, फिर बोला – जी हां. और आगे कुछ न कह सका. आंखों से झर - झर आंसू गिर
रहे थे. उनकी हालात बयां कर रही थी कि वह स्वेच्छा से नहीं बल्कि मजबूरन तलाक ले
रहा है.
जज साहब ने अमृता से
इजहार चाहा – आप भी स्वेच्छा से तलाक चाहते हैं ?
अमृता का धैर्य का
बांध टूट गया. अब रहा नहीं गया. पल भर की बात, किसी की जिन्दगी उजड़ेगी तो किसी के
दम्भ का विजय होगा. उसके मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे. बार - बार बादल की ओर
निहार रही थी, बादल सिर झुकाए खड़ा था. कुछ पल तक जवाब न पाकर जज साहब ने पुनः
प्रश्न दोहराया. बादल ने हिम्मत जुटाकर सर ऊपर उठाया. आखिरी बार अमृता की ओर देखने
का प्रयास किया. वह पहले से ही उसपर नज़र टिकाई हुई थी. दोनों की आंखें सजल थी. आंखों
से आंसू बह रहे थे. आंसू के साथ गिले - सिकवे धुल गए. आंखों की करुण पुकार सुनकर
अमृता बेसुध दौड़ पड़ी. आकर बादल के गले से लिपटकर खूब रोई. बादल भी रो रहा था. उन
दोनों की दशा देखकर बाकि लोगों की भी आंखों से आंसू छलक पड़े. नेह की डोर टूटने से
बच गई. अमृता के पिताजी वहां से तुनक कर चल दिए.
समाप्त