Thursday 1 September 2016

क्या हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं ?


हम एक ऐसे देश के वासी हैं जहां विविधताओं में भी खूब विविधताएं मिलती हैं. यहां हर रंग हर रूप, हर छांव हर धूप में विविधता पाई जाती है. यही विविधता हमारे जीवन में विविध रंगों की खुशियां घोलती हैं और जीवन को रंगीन बनाती है. हम उदार प्रकृति के अटल उपासक हैं और प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर जीते हैं. यही वजह है कि हम आनन्दमय जीवन के सच्चे हकदार हैं. जिस प्रकार मधुमक्खी अपने कार्यों में मगन होकर विविध फूलों के पराग व जल के सम्मिश्रण से हमारे लिए जीवनदायी मधुरस (शहद) तैयार करते हैं ठीक उसी तरह हम लोक कल्याण की भावना के साथ अपने कार्यों में मगन होकर दुनियाभर में ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं. हम ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की कामना के साथ अपने प्रगति मार्ग पर बढ़ते हैं. हमारी उदारता और सहृदयता ही हमारी पहचान रही है. विश्व कल्याण हमारा धर्म रहा है और जनसेवा हमारी परम्परा. इन्हीं सिद्धांतों के कारण विश्व में हमारी एक अलग पहचान है.
समय बदला लोगों की मानसिकता बदली. बदलाव तो प्रकृति का नियम है. इसे ना हम रोक सकते हैं और ना ही अस्वीकार सकते हैं. किंतु, बदलाव सही दिशा में हो इस बात का ध्यान हम अवश्य रख सकते हैं. आए दिन देशभर में घटित हो रही घटनाओं ने हमें एक बार पुनः आत्मचिंतन एवं आत्मविश्लेषण करने पर मजबूर कर दिया है. अब वक्त आ गया है कि हमें स्वयं से सवाल करना होगा – क्या हम सही दिशा में जा रहे हैं ?
विश्व की अन्य संस्कृतियों से हम काफी प्रभावित होते हैं विशेषकर पाश्चात्य संस्कृति का हमारे ऊपर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है. दिन-ब-दिन हम इस संस्कृति के मूरीद होते जा रहे हैं. वहां के रहन-सहन, खान-पान, भेस-भूषा, बोल-चाल को अपनाकर हम गर्वित होते हैं और स्वयं को अब्बल दर्जे का इंसान समझ बैठते हैं. हम उनके द्वारा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से थोपे गए उन तमाम चीजों को दिल से अपना लेते हैं किंतु, उनसे हमें जिस चीज को अपनाने की सख्त जरूरत है उसकी ओर हमारा ध्यान ही नहीं जाता है. अगर हमें उनसे कुछ अपनाना है तो बाकि सभी चीजों के केन्द्र में निहीत उनकी देशभक्ति की भावना को अपनाना चाहिए, उनके भाषा प्रेम को अपनाना चाहिए. किंतु, यह हमारे लिए सबसे बड़ी विडम्बना है कि इस ओर हमारा ध्यान ही नहीं जाता है और हम पाश्चात्य संस्कृति के रंग से रंगे हुए देशी सियार बन कर जीने में आनन्द पाते हैं.

जिस दिन हम पाश्चात्य देशों से उनके खान-पान, रहन-सहन, भेस-भूषा और बोल-चाल को किनारे कर उनसे उनका स्वदेश प्रेम तथा भाषा प्रेम की बात सीख जाएंगे उसी दिन से भारत विश्व में अपना गौरव का परचम लहराना आरम्भ कर देगा और एक दिन पुनः विश्व का सिरमोर बन जाएगा.

Wednesday 24 August 2016


उम्मीदों की कश्ती















टिमटिमाते तारे की रोशनी में
मैंने भी एक सपना देखा है  
टुटे हुए तारे को गिरते देखकर
मैंने भी एक सपना देखा है  
सोचता हूं मन ही मन कभी
काश ! कोई ऐसा रंग होता
जिसे तन-बदन में लगाकर
सपनों के रंग में रंग जाता ।
बाहरी रंग के संसर्ग पाकर
मन भी वैसा रंगीन हो जाता ।
सपनों से जुड़ी है उम्मीदेंपर   
उम्मीदों की उस परिधि को
क्या नाम दूं ? सोचता हूं तो 
मन किसी अनजान भंवर में
दीर्घकाल तक उलझ जाता है।
कोई अनसोची जवाब उभरता
फिर क्षण भर में लुप्त हो जाता है ।   
उम्मीद ही तो वह संजीवनी है
जिसके सहारे सपनों की राह में
आने वाली हर चुनौतियों के आगे
ना कभी मस्तक झुका ना दिल हारा  
उम्मीदों की इसी कश्ती में होकर सवार
मैं सपनों की रंगीन दुनिया ढूंढ निकालूँगा । 

@govind  

Monday 27 June 2016

मेरी कलम से @ Love Connection - आंख लड़ाई कम्पीटीशन

दुनिया में एक घटना अजीब की होती है जो वर्षों बीत जाने पर भी हमारी यादों की पटरी से नहीं उतरती. दिन, महीने कई वर्ष गुजर जाने पर भी वह दिल के सबसे सुरक्षित भाग में संजीवनी बूटी की तरह सदैव अपनी चिरकालीन हरियाली के साथ लहलहाती रहती है। वह घटना केवल हमारे और आपके साथ ही घटित नहीं होती बल्कि यह घटना तो हर किसी के साथ घटित होती है। कोई उसे सँजोकर अपने दिल की विरासत बना लेते हैं तो कोई उसे भूल जाने का भरपूर स्वांग रचते हैं, पर दिल की बात तो दिल ही जाने।
मेरे साथ यह घटना उस वक्त घटी थी जब मैं 12वीं में पढ़ता था। उस वक्त तक मैं पूर्ण अक्षत था। अक्षत शब्द का दायरा बहुत बड़ा है इसीलिए इस शब्द का प्रयोग मैं यहाँ अपनी मानसिक अवस्था के संदर्भ में कर रहा हूँ। आप इसका गलत अर्थ मत लगा लेना। इस घटना को मैं अजीब इसीलिए भी कहता हूँ क्योंकि यह बिना तैयारी की अचानक घट जाती है और चिरंजीवी बनकर हमारे दिल के एक भाग को हमेशा हमेशा के लिए रिजर्व कर लेती है.
उस दिन मेरे दोस्त कृष्णा के बड़े भाई के तिलक की रस्म थी । दोस्त का घर मेरे पड़ोस में ही था। मैं नियत समय पर शाम को छह बजे उसका घर पहुँच गया। उनके घरवाले तिलक की तैयारी में व्यस्त थे। मैं जैसे ही उसका घर पहुंचा उनके भैया ने मुझे भी कृष्णा के साथ कामों में इंगेज कर दिया। हमारी ड्यूटी लगी थी तिलक के लिए लड़की वालों की तरफ से आए हुए गेस्ट की आव-भगत की देखरेख करने की । हम भी अपने काम में बड़े ही दिल से जुट गए थे । गेस्टहॉल में नाश्ते पानी का इतजाम करवाते वक्त मैंने नोटिस किया कि गेस्ट ग्रुप में एक लड़की भी बैठी हुई है, पर उधर मैंने विशेष ध्यान नहीं दिया। अपनी ज़िम्मेदारी ईमानदारीपूर्वक हम निपटाने में व्यस्त थे।
कुछ देर बाद तिलक का रस्म आरंभ होने वाला था। हमारी ओर से इसकी तैयारी आंगन में पूरी कर ली गई थी। उसी समय लड़की वाले भी आकर वहाँ बैठने लगे। मैं फिर किसी काम के लिए घर के अंदर गया। जब बाहर आया तो सारे लोग आंगन में अपने-अपने स्थान पर बैठ चुके थे। अचानक मेरी नजर उस लड़की पर चली गई ज़ो लड़कीवालों की तरफ से आई थी। ओएमजी ! वह तो डैम ब्युटीफूल थी। गुलाबी सूट में वह जबरदस्त जंच रही थी। उसकी सुंदरता को मैं चोरी नजर से देख ही रहा था कि उसने भी मेरी ओर एक नजर डाल दी। हम दोनों की नजरें आपस में टकरा गई। कुछ वह भी शरमाई थोड़ा मैं भी शरमाया। उसकी आंखे झुक गई, विजय से मेरी आँखें चमक गई।
शादी का दिन आया । मैं बाराती बनकर वहाँ गया था। सबकी नजरें बरमाला की स्टेज पर दुल्हन के लिए बेताब थी पर, वहाँ शायद मैं ही एकलौता था जो दुल्हन की बहन के लिए बेताब था। (बाद में मुझे पता चला कि वह सुंदर बाला दुल्हन की चचेरी बहन थी।) स्टेज पर दुल्हन आई उसके साथ पाँच और बालाएँ थीं। उन्हीं बालाओं के साथ एक बाला वह भी थी जिसके लिए मेरी नजर तरस गई थी। वह वहाँ नीले रंग की साड़ी में थी, इसी वजह से उसे पहचानने में मुझे थोड़ा समय लग गया।
वह तो नीली साड़ी में परियों की रानी लग रही थी। और मैं नीली जींस और व्हाइट सर्ट के ऊपर ब्लैक बंडी में शायरों का राजा । मैं एकटक उसे निहारे जा रहा था। पर वह खुद में ही मदमस्त थी। वरमाला की रस्म पूरी हुई। वह दुल्हन के संग वापस चली गई। मैं उसे देखता रह गया।
मंडप में जब मैं पहुंचा तो वहाँ विवाह आरंभ हो गया था। परियों की वही रानी इस बार पीले रंग की सूट पहने मंडप में बैठी हुई थी। मैंने भी इस बार मौका नहीं गवाने का मन में दृढ़ संकल्प कर लिया। अवसर देखकर मैं उसके ठीक सामने कुछ दूरी पर बैठ गया। अब हम दोनों के बीच बिना किसी व्यवधान के आई कोंटेक्ट हो सकती थी। वही हुआ जिसकी मुझे आस थी। उसने मुझपर एक नजर डाली, तो मैंने भी पूरी तैयारी के साथ उनकी नजरों में अपनी नजरें टीका दी। ये क्या, मैं तो शॉक्ड हो गया। इस बार तो मेरी ही नजरें झुक गई। कुछ देर बाद मैंने अपना खूब दमखम लगाया और उसे अपनी नजरें झुकाने के लिए मजबूर कर दिया। फिर रात भर हमारी आँख लड़ाई की कंपीटीशन चलती रही। कभी मैं हारता कभी वह हारती। लेकिन सच्चाई यही है कि उस कंपीटीशन में अधिकतर बार मैं ही हारा था और पहले मेरी ही आँखें झुकी थी। कसम से ! उस दिन मुझे समझ आया कि लड़कियां आखिरकार कितनी ताकतवर होती है।
सुबह हुआ मैं उससे बात करने के फिराक में लग गया। काफी दांव-पैंच भिड़ाने के बाद आखिरकार एक अवसर मैंने ढूंढ ही निकाला। उसके सामने खड़े एक छोटे से बच्चे को बुलाकर मैंने उसे पीने के लिए पानी लाने की बात की और वह बच्चा सीधे जाकर उसी बाला को यह बात बता दी। वह तुरंत घर के अंदर से एक ग्लास पानी लेकर आई और मुझे दे दी।
मैंने पानी पिया और ग्लास उसे थमाते हुए कहा – थैंक यू ।
उसने कहा – वेलकम।
मैं उससे कुछ पूछता उससे पहले ही वह बोल पड़ी – क्यों रात में तो आप मुझसे हार गए ? बारातियों की तो नाक कटा दी आपने ? है कि नहीं ?
बाराती वैसे भी अपनी अल्हड़ता के लिए बड़े फैमस होते हैं । मैं बाराती बनकर जरूर गया था पर बारातियों वाली अल्हड़ता मुझमें थी नहीं । मेरे हारने की शायद यही एक वजह रही हो ।
मेरी नजर फिर झुक गई । मैंने बस इतना ही कहा – जी ।
उसने अगला सवाल दागा - पहली कंपीटीशन थी ?
मैंने सिर हिलाते हुए कहा - जी ।
चलते-चलते आखिरकार मैंने भी साहस जुटाकर पूछ ही लिया – आपका नाम ?
उसने तपाक से कहा – निशा ।
मैंने कहा – बाय ।
उसने भी दाएँ हाथ हिलाते हुए कहा – बाय ....बाय । 
उसके बाद आजतक उससे ना मेरी कोई बात हुए और ना ही कोई मुलाक़ात। एक दिन कहीं से मुझे पता चला कि उसकी शादी हो गई है और आजकल वह पटना में अपने पति और एक पाँच साल के बेटे के साथ रह रही है।
मैं भी अपनी जिंदगी में खुशहाल हूँ। पर आज भी उस लड़की का वह खूबसूरत चेहरा दिल के एक सुरक्षित कोने में संजीवनी बूटी की तरह अपनी पूर्ण हरियाली के साथ लहलहा रही है। क्योंकि वह मेरी लाइफ की पहली लड़की थी जिसके साथ मेरी नजर लड़ी थी और दिल में कुछ-कुछ हुआ था.