Wednesday 30 December 2015

2015 कुछ ऐसे जीया

हम 2015 के अंतिम सप्ताह में देखते ही देखते पहुँच गए हैं. आगे नव वर्ष के आगमन की तैयारी जोरों-शोरों पर है. आप ये मत समझ लेना कि पार्टी, सजाने-उजाने की तैयारी की मैं बात कर रहा हूं. मैं बात कर रहा हूं आगामी वर्ष को अपने मनमुताबिक बिताने की तैयारी के बारे में, कुछ आवश्यक परिवर्तन लाने के बारे में, कुछ आत्म विकास के बारे में और अंततः आपलोगों को कुछ नई-नई बातें बताने के बारे में.
आगामी वर्ष की बातें आगे होगी, फिलहाल हम बातें करेंगे लगभग अंतिम पड़ाव में पहुंच चुके वर्ष 2015 की उपलब्धियों और विशेष गतिविधियों के बारे में. तो आइए जानें वर्ष 2015 मेरे लिए क्या-क्या लेकर आया.
1.       वैवाहिक बंधन में बंधना – 26 फरवरी से मेरे जीवन की एक नई शुरुआत आरम्भ हुई. इस दिन से मेरी जिन्दगी का सफर एक बहुत ही खूबसूरत और समझदार जीवनसंगिनी अंजु के साथ आरम्भ हो गई. शादी के बाद कई ऐसे परिवर्तन मैंने अपने व्यक्तित्व एवं जीवन में अनुभव किया जिन्हें इससे पूर्व अनदेखा कर दिया करता था. सचमुच मैं पहले की तुलना में कहीं ज्यादा संजिदा हो गया हूं.
2.       लेखन की ओर झुकाव – बचपन से ही लिखने का शौक रहा था किंतु, बचपन में परिस्थितियां अनुकूल नहीं रहने की वजह से अपने इस शौक को हकीकत में नहीं बदल पाया था, पर जब परिस्थितियां अनुकूल हुई तो शौक मुर्झाने लगा था. और इस वर्ष के मध्य अचानक कुछ ऐसा हुआ कि मेरे अंदर का शौक एक बार फिर जीवंत हो उठा और मैं लिखने की ओर एक बार फिर जोर शोर से मुड़ गया. वर्ष के अंत तक कई कहानियां लिख डाली और इसका एक संग्रह ‘अलबेलिया’ नाम से प्रकाशनाधीन है. आप इसे खरीदें और मेरे मनोबल को बढ़ाएं.
3.       ब्लॉग लेखन – मई माह से मैंने ‘मेरी कलम से’ नाम से ब्लॉग लेखन का कार्य आरम्भ किया. ब्लॉग लेखन के आरम्भिक दौर में हूं इसीलिए कई बातें और नई नई चीजें मुझे अभी सिखने की जरूरत है. आप इस संदर्भ में कोई अच्छा सुझाव देकर मेरा मार्गदर्शन करना चाहें तो आपका स्वागत है. आगामी वर्ष 2016 से मैं अपना एक नया ब्लॉग ‘Learn And Grow Programme’ के साथ सक्रीय हो जऊंगा. आप इसे फोलो करें, नई – नई जानकारियों से मैं आप सभी को अवगत कराता रहूंगा.
4.       अंग्रेजी सिखना – अपने ज्ञान के दायरे को बढ़ाने के विचार से मैंने हिन्दी के साथ-साथ अंग्रेजी को भी आत्मसात करने का निर्णय लिया है. हालांकि यह निर्णय मैंने वर्ष के अंतिम महीनों में लिया है और मैं अनुभव कर रहा हूं कि इस निर्णय को लेने में मैंने थोड़ी देरे कर दी है. कोई नहीं जब जागा तभी सवेरा. इस दिशा में काफी कार्य किया है और अभी बहुत करना शेष है. समय-समय पर अपनी प्रगति से मैं आप सभी को अवगत कराता रहूंगा.
5.       घुमने फिरने का दौर – जीवन को रोचक बनाने के लिए मैंने इस वर्ष घुमने-फिरने के लिए भी पर्याप्त समय निकाला. इसमें मेरा काफी अच्छा अनुभव रहा. आप सभी को भी मैं इसके लिए सिफारिश करता हूं. ये महत्वपूर्ण नहीं है कि इसके लिए आप विदेश जाएं, या फिर किसी ऐसे स्थानों पर जाएं जो आपके बजट के बाहर हो. अपने आप-पास या नजदिकी क्षेत्रों में भी अपने दोस्तों या फिर परिवार जनों को लेकर घुमने जा सकते है और वहां कम लागत में भी घुमने का भरपूर आनन्द उठा सकते हैं. मैं भी मार्च में अंजु के साथ शिमला (हिमाचल प्रदेश) गया, वहां की बर्फ़बारी और कड़ाके की ठंड का भरपूर मज़ा उठाया. इस ट्रीप में एक और बात यह हुई कि अंजु के लिए हवाई सफ़र का यह पहला अनुभव रहा. इसके बाद हमने कई और जगहों का कार्यक्रम बनाया और इसी दौर में देवघर (झारखण्ड) जाकर बाबा विश्वनाथ के दर्शन किये, मंगलोर (कर्नाटक) के पनम्बूर तट (beach) में खूब अठखेलियां की. चिकमंगलूर (कर्नाटक) में पर्वत घाटी का आनन्द उठाया, मैरिना बीच, चेन्नई (तमिलनाडु) देखा, पांडीचेरी में रॉक बीच, अरविन्दो आश्रम, पैराडाइज बीच का लुत्फ उठाया. वहां मेरे और अंजु के लिए समुद्र में बोटिंग करने का जीवन में पहला अनुभव रहा. वर्ष के अंतिम पड़ाव तक पहुंचते-पहुंचते मडिकेरी (कुर्ग) जाकर कॉफी बगान और कालीमिर्च की खेती देखी और एबी फॉल, राजा सीट, मडिकेरी फोर्ट देखा. मैसूर जाकर मैसूर पैलेस की खूबसूरती और भव्यता देखी और बृन्दावन गार्डेन में खूब मजा किया. अंत में नन्दी हील का भी बड़ा सुखद अनुभव रहा. बेंगलोर के अंतर्गत लालबाग, कबन पार्क, जे.पी. पार्क ईशकॉन टेंपल और बन्नेरघट्टा नैशनल पार्क का भी बहुत ही अच्छा अनुभव रहा. कुल मिलाकर वर्ष भर के घुमने-फिरने का अनुभव बहुत ही खास रहा.
इसके साथ और कई ऐसी बातें हुई जिसे मैं सदैव मधुर स्मृति के रूप में संजोकर रखना चाहूंगा. इस दौरान कई ऐसी बातें भी हुई जिसे मैं कभी स्मरण भी करना नहीं चाहूंगा. छोटी-बड़ी कई सफलताएं मिली और कई असफलताएं भी हाथ लगी. कई नए दोस्त बने और नए अनुभव मिले.

इस तरह मिली-जुली परिणामों के साथ वर्ष 2015 बीत गया. नव वर्ष द्वार तक आ पहुंचा है. नववर्ष के स्वागत के लिए मैं भी मानसिक रूप से तैयार हूं. कुछ नई बातें सिखने और सिखाने का दौर Learn And Grow Programme के साथ आरम्भ करने जा रहा हूं. आप सभी मुझसे जुड़े रहें और मेरे साथ नए सफ़र का अनुभव साझा करते रहें. 

आगामी post Learn And Grow Programme के साथ 










Sunday 20 December 2015

एक बदलाव करें.

कई दिनों से मैं जीवन में जरा उबाऊ-सा महसूस कर रहा था. लाइफ नीरस लग रही थी. मन में कई विचार उमड़-घुमड़ रहे थे. कुछ करना है. कुछ करना है. बस सोच का ही घोड़ा दौड़ रहा था. इस दौरान कई ऐसे कार्यक्रम दिमाग में आए जिसे कार्यांवित करने के लिए मैं उद्विग्न हो रहा था. कुछ दिन गुजरते ही सारे उत्साह शिथिल पड़ जाते. मन के उत्साह, जोश फिर वहीं आकर अटक जाते जहां से शुरुआत हुई थी. कई कार्यक्रम तय किया किंतु, उन्हें धरातल पर उतार नहीं पाया. कार्यों को अंजाम तक नहीं पहुंचा पाने के कारण मन खिन्नता से भर जाता है और खुद को हतोत्साहित महसूस करता हूं.

किंतु, आज मैंने परिवर्तन की शुरुआत करने का ठान लिया है. आज की शुरुआत मैंने कार्यालय आधे घंटे पहले आकर किया है. अक्सर मैं एक्जेक्ट समय पर कार्यालय पहुंचने के लिए निकलता था. बेतहाशा दौड़ पड़ता था. ट्रेफिक के सिग्नल को मौका मिलते ही अक्सर तोड़ कर आगे निकलने के फिराक में रहता था. इसी वजह से कई बार दुर्घटना होते-होते बची. एक बार बचते – बचते एक दुर्घटना हो गई और मेरी नई गाड़ी के कई पार्ट्स टुट गए. उन्हें रिप्लेस कराना पड़ा. और मन में डर भी घर कर गया.

आज की इस नई शुरुआत से मुझे अहसास हुआ कि पहले मैं कितना गलत था. आज मैं बड़ी आसानी से आधे घंटे पहले कार्यालय पहुंच गया. ना मुझे किसी भागमभाग का हिस्सा बनना पड़ा और ना ही किसी तरह की कोई हड़बड़ी मन में थी. इस दौरान ट्रेफिक भी कम मिला. समय की भी बचत हुई और पेट्रोल भी कम जले. राइडिंग का पूरा मजा लेते हुए कार्यालय पहुंच गया और दिनभर का कार्यक्रम भी ऑफिस का कार्य आरम्भ करने से पहले ही पूरा कर लिया. मन को एक तरह की तसल्ली भी मिली.

इस पहल को मैं अपने जीवन का एक अंग बनाने का प्रयास करूंगा. आप भी, इस तरह की शुरुआत कर सकते हैं और भारी ट्रेफिक की मुसीबत से बच सकते हैं. बेतहाशा दौड़ती हुई जीवन की गाड़ी पर अपना नियंत्रण स्थापित कर सकते हैं. गाड़ी के फ्यूल बचा सकते हैं और कुछ हो ना हो किंतु रास्ते में आप बेफिक्र होकर गाड़ी चला सकते हैं और इसका भरपूर आनन्द उठा सकते हैं.

फिलहाल मैं इतना ही कहूंगा कि आप भी आज कोई नई शुरुआत करें जो आपके जीवन के लिए अथवा दिनचर्या के लिए फायदेमंद हो. उसे कायम रखें और ऐसी आदत को जीवन का एक अंग बना लें. आपको लाभ मिलेगा.

आगे मैं आपको बताऊंगा कि इस शुरुआत से मुझे क्या लाभ मिला और आपको भी ऐसे छोटे-छोटे बदलाव से क्या लाभ मिलनेवाला है.

बहरहाल, आप मुझसे जुड़े रहें और Learn And Grow Programe  का सक्रीय हिस्सा बनें.  


Learn And Grow Programe  के बारे मैं आपसे विस्तृत चर्चा मैं शीघ्र ही करूंगा. Plz be in touch. 


+Zen Habits Read Aloud




Wednesday 16 December 2015

क्या पढ़े, क्यों पढ़े

कई दिनों से मैं एक गहन आत्ममंथन के दौर से चल रहा था. तय नहीं कर पा रहा था कि आखिर मैं क्या कर रहा हूं और वास्तव मैं क्या करना चाहता हूं. यही प्रश्न बार-बार मेरे दृष्टिपटल पर उभरता रहा मिटता रहा. कुछ पढ़ता रहा, कुछ सोचता रहा. इसी दौरान पढ़ते-पढ़ते मैं गलती से ही मगर Leo Babauta  के ब्लॉग Zen habits में जा घुसा. उसे पढ़ता रहा, समझता रहा और अपने व्यावहारिक जीवन में उतारने का प्रयास करता रहा. इसमें कहां तक मैं सफल हुआ यह आपको मैं बाद मैं बताऊंगा, और साथा ही यह भी बताऊंगा कि उनसे प्रेरित होकर मैं क्या करने जा रहा हूं.
बहरहाल, अगर आपके पास भी थोड़ा समय अतिरिक्त है तो इस मेरे साथ जुड़ें और आपको भी भी मैं कई नई-नई बातों से अवगत कराऊंगा और आपके जीवन में भी सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करूंगा.
 http://zenhabits.net 

Saturday 17 October 2015

मन बार-बार रोता रहा

मन बार-बार रोता रहा
जीने की सूध हर बार खोता रहा,
नयन तो टिकी थी, उसके आने की राह में
पर क्या पता,
 उस राह में कोई नफ़रत के कांटे बोता रहा.
मानता हूं,
एक खता तो हुई थी मुझसे भी, ए जिन्दगी,
किसी के सपने जुड़े थे मुझसे भी, ए जिन्दगी,
पर क्या पता,
पल भर में वह रूठ जाएगी मुझसे भी, ए जिन्दगी.
राह जिन्दगी का यूं बदल लेगी मुझसे भी, ए जिन्दगी.
तड़पकर उसकी याद में,
तलब से मगर, हर बार यादों के दीये जलाता रहा

और दिल को रुलाता रहा, मन को समझाता रहा. 

Monday 21 September 2015

मृगतृष्णा


Govind Pandit 'Swapnadarshi'
सरकारी नौकरी लगते ही रिश्तेवालों की सूची लम्बी हो गई थी. हर दिन एक नए रिश्ते लेकर कोई न कोई उसका घर चला आता था. अपनी मां से जब भी उसकी बातें होती वह लड़की के दादा परदादा से लेकर उसकी जनम कुण्डली तक बखान कर ही दम लेती. हर दिन रिश्ते के नए चेप्टर खुलते, उसके मन में इस बात को लेकर कुतूहल बना रहता था. उसे स्कूल के दिन याद हो आए थे. वहां भी हर रोज नए चेप्टर खुलते और नई-नई जानकारी मिलती थी. बात कुछ वैसी ही यहां पर भी उसके साथ हो रही थी. यहां भी हर रोज रिश्ते के चेप्टर खुलते थे और नई-नई लड़कियों की जानकारी मिलती थी. यहां के चेप्टर भले ही अलग होते, किंतु मूल बिन्दु तो एक ही थी, शादी. आखिर ये सब सुनते-सुनते गजेन्द्र का मन भी भर गया था. एक दिन उसने मां से कहा – मां ! शादी के अलावे भी तो कई सारी बातें होगी तेरे पास. तुम मेरी शादी के पीछे क्यों पड़ी हुई हो ?
उसकी मां डपटकर बोली – रेहेन दे, अभी शादी ना करेगा तो क्या अच्छी छोरियां हाथ में आरती की थाली सजाए तेरी आस में बैठी रहेगी ? आजकल अच्छी छोरियां मिलती कहां है ? तेरा भाग्य उजला है कि मनमोहनी - सी छोरियों के बाप तेरे आने के वाट जोह रहे हैं. सुन, अबकी बार जब अईयो, लड़की फाइनल करके ही जाना. हम बार - बार कुटुम्बों को अंधेर में नहीं रख सकते है. और हां खाना पीना ढंग से करना, पिछली बार जब तू आया था बहुत दुबला गया था. रखती हूं, घर में ढ़ेरों काम पड़ा हुआ है.                          
मां ने फोन रख दिया था, किंतु उनकी बातों पर ही गजेन्द्र का मन अबतक उलझा हुआ था. शादी .......शादी.......शादी........खुद को वह शादी के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं कर पा रहा था. अभी उसकी नौकरी लगे साल भर भी नहीं हुआ था, और उसके घरवाले उसकी शादी के लिए परेशान हो रहे थे. पहला प्रोमोशन के बाद ही इसपर विचार करने के बारे में वह सोच रहा था किंतु, घरवालों की जिद्द के आगे उसकी एक भी नहीं चल रही थी.
इस बार घर आते ही उसकी खातिरदारी राजकुमारों - सी होने लगी थी. खान पान से लेकर बिछावन तक उसकी पसन्द का खास ख्याल रखा जा रहा था. बेटा चाहे कितने भी नालायक क्यों न हो लेकिन, शादी विवाह के समय आते ही उसकी खातिरदारी ऐसी होने लगती है, जैसे वह विश्व विजेता बनकर लौटे हो. पर यहां तो गजेन्द्र की बात ही कुछ जुदा थी. वह नालायक नहीं, बल्कि अपने खानदान का नाम रौशन करने वाला एक महत्वाकांक्षी युवक था. उसकी खातिरदारी राजकुमारों-सा होना तो बनता था.
सर्दियों का मौसम था. बाहर बगीचे में सुनहरी धूप आ गई थी. इस खिली-खिली सुबह को देखकर उसका मन भी खिल उठा था. अखबार उठाकर वह सीधे बगीचे में चला गया. बाहर की ठंडी हवा और खिली धूप का सम्मिश्रण पाकर उसका मन पुलकित हो रहा था. उसी समय अपने हाथ में कुछ तस्वीरें लिए उसकी मां वहां आ पहुंची. बेटे के हाथ में उन तस्वीरों को थमाकर उसकी मां वहीं सामने बैठ गई और बोली – अब तू खुद ही देख ले और अपना मनपसंद जीवनसाथी चुन ले. बाद में कोई गिला-शिकवा ना रहे मन में.
मां आप भी ना कमाल करती हो. फुरसत से देख लेते इतनी हड़बड़ी किस बात की ? – गजेन्द्र जरा झल्ला उठा.
तू ना समझेगा, शुभ काम में देरी किस बात की. – मां ने समझाना चाहा.
उसके हाथ में कई लड़कियों की तस्वीरें थी. साथ में उनके बायोडाटा भी लगे हुए थे. एक-एक कर वह तस्वीर देखता गया. फाइनली एक तस्वीर पर आकर नज़र अटकी – सोनम प्रकाश, एजुकेशन – एमबीए मार्केटिंग़. उसके बारे में सारा डिटेल्स लिया. वह अपनी ही बिरादरी की निकली. उसके पूर्वज पास के ही गांव के मूलवासी थे किंतु, नौकरी के बाद उनके दादा चण्डीगढ़ में जा बसे थे. उसके बाद उनका परिवार वहीं का होकर रह गया. सबकुछ मैचिंग में ही लगा. एक शुभ दिन देखकर वे लोग लड़की वाले के यहां पहुंच गए. लड़की तस्वीर से भी कई ज्यादा सुन्दर निकली. बात आगे बढ़ी और शादी तय हो गयी. चट मंगनी पट विवाह संपन्न हो गया.
नवविवाहित जोड़े सारे रस्मों को निपटाने के बाद बेंगलोर चले आए. गजेन्द्र वहीं नौकरी करता था. सोनम अपने शहर से काफी दूर आ गई थी. उसके लिए यह पहला मौका था जब उसे अपने घरवालों से इतना दूर रहना पड़ रहा था. अपनों से दूर होने के बाद उसके दिल में जो खाली जगह बन गई थी उसे अभी तक गजेन्द्र भर भी नहीं पाया था. गजेन्द्र स्वभावतः एक सुलझे हुए, माहिर एवं चिंतनशील युवक था. ऑफिस में अत्यधिक कार्य दवाब के बावजूद भी वह घर पर सोनम को इसका लेशमात्र भी भनक नहीं होने देता और बड़ी एनेर्जेटिकली उसके साथ घुमता-फिरता और मौज-मस्ती करता था. उसे हर वक्त खुश रखने के लिए नित-नए सरप्राइज पेश करता. नई-नई जगह घुमना-फिरना, अच्छे-अच्छे रेस्टोरेंट में सरप्राइज पार्टी रखना, छोटे-छोटे अवसरों को भी बड़े मनोरंजक ढंग से सेलिब्रेट करना और उसके मनचाहे गिफ्ट लाकर देना आदि मानो गजेन्द्र के लाईफस्टाइल में अहम रूप से शामिल हो गया था. इन सबके पीछे एक ही मंशा था – सोनम को सर्वाधिक खुशहाल रखना.
समय बीतता गया. सोनम भी पढ़ी-लिखी थी. घर पर यूं ही खाली बैठे रहना उसे अच्छा नहीं लगता. बेंगलोर जैसे शहरों में तो अवसर की कोई कभी भी नहीं थी. उसने भी जॉब कर ली. अब उसे भी अकेलापन महसूस नहीं होता. घर की आमदनी भी दुगुनी हो गई थी. गजेन्द्र को भी थोड़ी राहत मिली और काम करने से सोनम का भी मन लगा रहता था. साथ ही, धीरे-धीरे उसमें आत्मनिर्भरता की भावना भी आने लगी थी. यह उसके लिए अच्छी बात थी.
थैंक यू....यू....यू....यू ! – सोनम ने भी बड़ी प्यारी सी मुस्कान के साथ ‘यू’ को गीतलहरियों में पिरोकर उसका शुक्रिया अदा किया.
आज सचमुच वह बहुत ही खूबसूरत लग रही थी. वैसे वह बेशक खूबसूरत थी, पर आज उसके लिए खास दिन था इसीलिए कुछ ज्यादा ही सज-संवर कर ऑफिस आई थी. आज उनका फस्ट मैरिज एनिवर्सरी था. हाफ़ डे के लिए ऑफिस आई थी. ऑफिस में यह खबर फैलते ही सभी ने आकर उसे बधाई दी. खुद बॉस भी उसके पास आकर बोले – सोनम जी ! कंग्रेचुलेशन्स ऑन योर फस्ट मैरिज एनिवर्सरी. और यह हमारे ऑफिस की ओर से छोटी सी भेंट. कहकर उन्होनें गिफ्ट का एक पैकेट उसे थमा दिया.
सोनम घर तो आ गई थी किंतु, उसका मन अभी भी ऑफिस में ही चौकड़िया भर रहा था. अपनी सुंदरता को लेकर ऑफिस में मिले कम्प्लिमेंट से वह फूले नहीं समा रही थी. वह जानती थी कि वह खूबसूरत है किंतु, इतनी ज्यादा खूबसूरत है इस बात का अहसास उसे आज पहली बार हुआ था. उसमें भी बंटी के शब्दों ने तो मानो उसे किसी सेलेब्रिटी के समकक्ष लाकर खड़ा कर दिया हो. ब्युटीक्वीन, टेलेंटेड वाह ! वाह ! क्या बात कही थी उसने. आजतक गजेन्द्र ने भी उसकी तारीफ़ में ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया था या कभी किया भी होगा तो उसे नोटिस नहीं किया गया था. इसमें सच्चाई भी है, अगर पति तारीफ़ में अच्छे शब्दों का प्रयोग करे तो पत्नियों का ध्यान उसके शब्दों की ओर नहीं जाकर शब्दों के पिछे के कारणों की ओर चला जाता है कि आखिर आज जरूर कुछ बात है, इसीलिए खुशामद कर रहे हैं. पति द्वारा की गई तारीफ पत्नियों की नज़र में खुशामद बन जाती है, इसीलिए सही जजमेंट नहीं हो पाता.
शाम को घर आते ही सोनम ने ऑफिस की सारी दास्तान गजेन्द्र को सुनाई. उसने सबकुछ सुना किंतु, उतने इंटरेस्ट के साथ नहीं जितना कि सोनम अपेक्षा करती थी. पतियों की भी तो यही मानसिकता होती है कि अपनी पत्नी की तारीफ़ या निंदा का सिर्फ उन्हें ही फण्डामेंटल राइट प्राप्त है. अगर उसकी पत्नी की तारीफ़ या निंदा कोई और करे तो उन्हें लगता कि उनके फण्डामेंटल राइट का किसी ने अतिक्रमन कर लिया हो. कुछ ऐसा ही अनुभव गजेन्द्र को भी हुआ था. इसीलिए उसने भी टॉपिक को बदलते करते हुए कहा – अच्छा छोड़ो इन बातों को. आगे का क्या प्लानिंग है ?
सोनम ने कहा - चलते हैं किसी रेस्टोरेंट में.
ओ.के.
दोनों रेस्टोरेंट चल दिए.
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बंटी सोनम के ऑफिस में उसका सहकर्मी था और अबतक वह कुंवारा ही था. वह हैण्डसम था, किंतु अभी तक उसकी शादी नहीं हुई थी या यूं कह लें कि वह शादी के बंधन में बंधना ही नहीं चाहता था.  अबतक वह कई लड़कियों के संपर्क में आ चुका था. उनके साथ घुमना-फिरना, मौज-मस्ती सबकुछ करता था. यहां तक कि कई लड़कियों के साथ उसने फिजिकल रिलेशन भी बना लिया था लेकिन, शादी की बात सामने आते ही उससे कन्नी काट लेता था. सोनम के प्रति भी उसके दिल में सॉफ्ट कॉर्नर था किंतु, वह इस बात को भी इग्नोर नहीं कर सकता था कि सोनम शादी-सुदा थी. सोनम ने भी इस बात को नोटिस किया था कि बंटी का उसके प्रति आकर्षन है किंतु, उसने बंटी को कभी भाव नहीं दिया था. वैसे भी सुन्दरता के प्रति आकर्षित होना तो मानवीय स्वभाव है.    
किंतु, उस दिन से सोनम और बंटी के बीच बातचीत का सिलसिला बढ़ने लगा. पहले हाय... हेलो... तक ही बातें सीमित थी लेकिन, अब दोनों धीरे-धीरे अपने मन की बातों को भी एक-दूसरे से शेयर करने लगे थे. कभी-कभार दोनों केफेटेरिया में जाकर एक साथ कॉफी भी पी आते थे. शुरू-शुरू में ऐसा करना सोनम को जरा अनकम्फर्टेबल लगता था पर, धीरे-धीरे आदत सी हो गई थी. जिस बंटी को देखते ही कभी उसे एक चिढ़ होती थी, किंतु अब उसके साथ होना अच्छा लगता था. बंटी भी इसका खूब फायदा उठा रहा था. वह उसकी तारीफ पर तारीफ करता जाता. उसे खूबियों का भण्डार साबित करने का प्रयास करता रहता था. वैसे लड़कियां पटाने के मामले में वह मंझे हुए खिलाड़ी था. उसने अपने सारे दांव लगा दिए. अपनी प्रशंसा सुनना भला किसे अच्छा नहीं लगता ? सोनम को भी उसकी प्रशंसा भरी बातें अच्छी लगती थी. दोनों के बीच का मेलेजोल धीरे-धीरे दोस्ती में बदल गया. 
बंटी ज़रा मॉडर्न एवं खुले विचारों वाला लड़का था. जीवन में उसका ना कोई आदर्श था और ना ही वह किसी प्रकार की जिम्मेदारी उठाना चाहता था. जिम्मेदारियां उसे बंधन लगती थी. समाज के रीति-रिवाज, नियम-कायदे सब उसे ढकोसला लगता था. वह स्वच्छंद जीवन का हिमायती था. बादलों की तरह बंधनमुक्त जीवन जीना चाहत था.  
संगत का प्रभाव सोनम पर पड़ने लगा था. धीरे-धीरे उसके स्वभाव में परिवर्तन आने लगा था. दिन भर चहकने और मुस्कराने वाली सोनम बदलकर गंभीर और थोड़ी चिंतित रहने लगी थी. कई सारे सवाल उसके दिमाग में कीड़े की तरह सुगबुगाने लगे थे. उसकी चैन छीन गई थी और दिलपर बेचैनी ने डेरा डाल लिया था. इस परिवर्तन को उसने खुद आमंत्रित किया था. जिस गजेन्द्र को वह पहले दिलोजान से प्यार करती थी, उसके प्रति वह पूरी तरह समर्पित थी, अब उसी गजेन्द्र की हर खूबी और खामी की तुलना वह बंटी के साथ जोड़कर करने लगी थी.
एक दिन केफेटेरिया में चाय की चुस्की लेते हुए सोनम ने बात छेड़ी – बंटी जी ! इफ यू डोंट माइंड, एक बात पूछूं ?
हां बिलकुल पूछिए.
आपने अभी तक शादी क्यों नहीं की है ?
बंटी एक पल के लिए रुका, फिर बोला – एक्चुअली सोनम जी ! क्या बताऊं अभी तक आप जैसी कोई मिली ही नहीं.
आप जैसी मतलब ?
ब्युटीफुल, स्मार्ट एंड टेलेंटेड.
बस रहने दीजिए. अति सर्वत्र वर्जयेत. – सोनम ने कहा.
दिस इज़ द फेक्ट सोनम जी ! आजकल यदि आप जैसी सुन्दर और टेलेंटेड लड़की किसी को मिल जाए तो समझ लीजिए कि उसने पिछले जनम में जरूर कोई पुण्य का काम किया होगा.
व्हाट्स अमेजिंग ! आप भी पाप-पुण्यों जैसी बातों में बिलिव करते हैं ?
हां, कभी-कभी करना पड़ता है.
इसी तरह दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला जारी रहा और बंटी जितना संभव हो सका सोनम के करीब जाने के लिए उसकी तारीफ़ करता गया. सोनम भी एक दो वाक्य बंटी की तारीफ़ में कह देती थी. बंटी भी खुश और इधर सोनम भी खुश. दौर बदला लोगों की मानसिकता बदली, यह अच्छी बात है; क्योंकि बदलाव प्रकृति का नियम है किंतु, विडम्बना यह है कि यहां बदलाव का रथ अच्छाई की तरफ नहीं जाकर बुराई की ओर जाने लगी थी. सोनम को गजेन्द्र से अच्छा बंटी लगने लगा था. बंटी की प्रशंसा भरी चिकनी-चुपड़ी बातें उसे खुश कर देती किंतु, गजेन्द्र की जिम्मेदारीपूर्ण बातें उसे बोरिंग लगने लगी थी. बंटी उसे खुश मिजाज लगने लगा था, जबकि गजेन्द्र ऊबाऊ. सोनम के दिमाग में कम्पेरिजन का कीड़ा घुस गया था, जो उसके वैवाहिक जीवन को अंदर से नष्ट कर रहा था.
जब स्वार्थ की भावना मन में आती है तो उसका प्रभाव व्यवहार पर भी पड़ना स्वभाविक है. ऐसा ही सोनम के साथ भी होने लगा था. गजेन्द्र की जिन चुलबुली बातों पर वह पहले ठहाका मारकर हंसती थी आज उसकी वही बातें उसे दिखावा लगने लगी थी. गजेन्द्र जो उसका आदर्श था अब वह छलिया लगने लगा था. उनके पारिवारिक जीवन में खटपट शुरु हो गई थी. दोनों के बीच शिकवे-शिकायत का दौर चल रहा था. एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला. अंततः गजेन्द्र को लगा कि इन सारे फसाद की जड़ सोनम की नौकरी है. इसीलिए कड़ा कदम उठाते हुए उसने घोषणा कर दी कि तुम कल से नौकरी पर नहीं जाओगी. लेकिन, सोनम को उसका यह निर्णय नागवार लगा. उसने साफ़ शब्दों में कह दिया – चाहे जो भी हो जाए किंतु, मैं जॉब नहीं छोड़ सकती.
तुम्हें जॉब छोड़नी होगी, दिस इज़ माई ऑर्डर एंड लास्ट वार्न.
मैं अपनी जॉब छोड़कर तुम्हारा गुलाम नहीं बन सकती.
बात इतनी बढ़ी कि दोनों के बीच हाथापाई भी हो गई. सोनम घर से निकलकर चली गई और एक अलग कमरा लेकर रहने लगी. यह बात दोनों के घर तक पहुंच गई. दोनों के घरवालों ने अपने-अपने स्तर से दोनों को समझाने का काफी प्रयास किया किंतु, बात नहीं बनी. नौकरी छोड़ने के लिए ना ही सोनम राजी हुई और ना ही गजेन्द्र उसे अपने साथ रखने के लिए राजी हुआ. दोनों एक ही शहर में रह रहे थे इसीलिए कई बार वे दोनों आमने-सामने भी हो जाते थे किंतु, एक-दूसरे को इग्नोर कर आगे निकल जाते थे. दोनों ऐसे रिएक्ट करते मानो वे आपस में कभी मिले ही नहीं हो. दोनों जो कभी एक जिस्म दो जान हुआ करते थे आज अजनबी बनने का नाटक कर रहे थे. इगो भी क्या चीज है. लोग कहते है इंसानियत सबसे बड़ी चीज है किंतु, मुझे यहां लग रहा था कि इगो इंसानियत से भी बड़ी चीज है जो इंसानियत के सीने में पांव रखकर आगे बढ़ जाता है. वहां दोनों के बीच वही तो हो रहा था.
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उधर बंटी और सोनम के बीच घनिष्टता बढ़ने लगी थी. बंटी सोनम के अकेलापन का भरपूर फायदा उठाने के फिराक में लगा हुआ था. अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों और प्यार का दिखावा कर आखिरकार वह सोनम का विश्वास जीतने में कामयाब रहा. अब सोनम का कमरा भी वह आने जाने लगा था. सोनम को भी इससे कोई एतराज नहीं होता. एक दिन घुटने के बल खड़ा होकर उसने अपने प्यार का इजहार कर ही दिया – सोनम जी ! आई लव यू. मैं आपको जी-जान से प्यार करता हूं. आपके साथ जिन्दगी के सारे ख्वाब सजाना चाहता हूं. आपके साथ जीना-मरना चाहता हूं. क्या आप मुझे इस लायक समझते हैं ?
सोनम कुछ जवाब तो नहीं दे पाई, किंतु उसे अपने हाथों से पकड़कर उठा लिया और सीने से लगा लिया. वह जरा भावुक हो गई थी. आंखों से आंसू निकल आए थे. बंटी ने अपने हाथों से उन्हें पोंछ दिया. इस क्रम में वह फफक कर रो पड़ी और बोली – बंटी ! गजेन्द्र दिल से बुरा नहीं है. उन्हें जरूर हम दोनों को लेकर कुछ गलतफहमी हुई होगी अन्यथा मेरे साथ वह इस तरह कभी नहीं पेश आते. मैं उन्हें अच्छी तरह से जानती हूं. मैंने भी ताव में उन्हें बहुत उल्टा-सीधा कह दिया था, नहीं तो बात यहां तक नहीं पहुंचती. इस हालात के लिए मैं ही गुनाहगार हूं. उस समय मेरी ही मति मारी गई थी.  
सोनम जी ! भूला दीजिए पूरानी बातों को, पिछे मुड़ने के बारे में आप क्यों सोच रहीं हैं ? आपकी भी अपनी लाईफ है, आप सेल्फ डिपेण्डेड हैं तो फिर दूसरों की गलती को भी अपने सर क्यों मढ़ रही हैं ?   
सोनम को बंटी ने अपने बाहों में भरते हुए कहा – जानू ! आप सिर्फ हां कर दो. फिर मैं दुनिया की सारी खुशियां आपके कदमों में लाकर रख दूंगा.
सोनम के मन में दुविधा थी. वह किसी और की पत्नी थी. अभी तक गजेन्द्र से उसका तलाक भी नहीं हुआ था. किंतु, फिर भी बंटी के बाहों में उसे अच्छा लग रहा था. आखिर बंटी भी तो उससे काफी प्यार करता था. बंटी के बाहों का कसाव मजबूज होता जा रहा था. वह डुबकर प्यार करने के लिए उतावला हो रहा था. सोनम भी अपोज नहीं कर रही थी. बंटी का साहस और बढ़ता गया. दोनों के जिस्म में आग दहकने लगी थी. कुछ ही पल में दोनों एक-दूसरे में समा गए. दो जिस्म एक जान हो गए. बंटी ने अपना उद्देश्य का चरम पा लिया था. वह खुश था. किंतु सोनम को ना खुशी थी और ना ही पश्चाताप. वह बस बिन विचारे परिस्थिति के साथ बह रही थी. उसके विपरीत जाने की हिम्मत उसके पास नहीं थी.
दोनों के प्रेम मिलन का दौर चलता रहा. इस सतरंगी दुनिया मैं बंटी को तो काफी मजा आ रहा था लेकिन, सोनम के अंदर किसी कोने में दुबक कर बैठी नैतिकता उसे ऐसा करने से रोक रही थी. उसने बंटी को ऐसा करने से रोकने का भी काफी प्रयास किया, किंतु बंटी की जिद के आगे वह निरुपाय हो जाती. बंटी के प्यार के आगे वह बेवश होकर अपना हथियार डाल देती. बंटी को उसने सबकुछ लूटा दी थी. बंटी भी हर रोज प्यार के नए-नए तरीके अपनाकर उसे इम्प्रेश करने का प्रयास करता था.
गजेन्द्र के दोस्त ने एक दिन गजेन्द्र को उनदोनों के बारे में पूरी जानकारी दी. गजेन्द्र तो आग बबूला हो उठा. सोनम के लिए उसके दिल में जो प्यार था वह अब नफ़रत में बदल गया था. उसका शक सही निकला था. सोनम की दगाबाजी ने उसे बावला बना दिया. उसके सर पर खूनी भूत सवार हो गया था. उनके दोस्तों ने काफी समझाया, बुझाया और उसे शांत किया. सभी ने मिलकर उसे तलाक ले लेने की नसीहत दी, क्योंकि उसके साथ रिश्ते निभाने का अब कोई सवाल ही नहीं था.
एक दिन मिली जानकारी के हिसाब से पूरी प्लानिंग कर गजेन्द्र अपने दोस्तों के साथ सोनम के पास जा पहुंचा, जहां उन दोनों को रंगे हाथ पकड़ लिया गया. गजेन्द्र ने तो बंटी पर लात-घुस्से बरसाने शुरू कर दिये, किंतु दोस्तों ने उसे पकड़ लिया.
गजेन्द्र आग बबूला था. उसने दांत पीसते हुए कहा – साले कमीने ! आई’ल किल यू. मेरी बीबी पर हाथ डालता है.
बंटी भी कॉलर झाड़ते हुए उठा और बोला – कौन है तेरी बीबी ? पूछो, है तेरी बीबी ?
गजेन्द्र फिर उसपर झपटा लेकिन, दोस्तों ने उसे पकड़कर अलग कर दिया.
बंटी ने भी अपना ताव दिखाया – चल हट साले ! यहां बड़ी मर्दानगी दिखा रहा है. मर्द था तो अपनी बीबी को संभाल नहीं सका, नामर्द कहीं के.
तबतक वहां काफ़ी भीड़ जमा हो चुकी थी. आसपास के लोग यही मानते थे कि बंटी ही उसका पति है. किंतु, आज जब उन्हें सच्चाई का पता चला तो वे लोग दंग रह गए. आज सोनम का चरित्र सभी के सामने आ चुका था. सोनम सिर झुकाए एक कोने में दुबककर सिसकियां भर रही थी. पल्लू से उसका मुंह ढका हुआ था. लोगों को अब वह मुंह दिखाने के काबिल नहीं थी. उससे तरह-तरह के सवाल पूछे जा रहे थे. लोगों का हर सवाल उसके दिल को तीर की तरह बेधता जा रहा था. वहां पहुंचे आसपास के लोगों ने सभी को समझा-बूझाकर मामला शांत करा दिया. अगले दिन गजेन्द्र के वकील ने तलाक के पेपर्स पर उनदोनों से साइन करवा लिया. कुछ ही दिनों में दोनों का तलाक भी हो गया.
बंटी और सोनम भले ही दोनों साथ रह रहे थे किंतु, दोनों के बीच अभी तक ना कोई कानूनन और ना ही कोई सामाजिक रिश्ता कायम हुआ था. एक तरह से कह लें तो वे दोनों ‘लिव इन’ रिलेशनशिप में रह रहे थे. भले ही भारतीय समाज इस तरह के प्रचलन को हज़म नहीं कर पा रहा हो, किंतु कानून ऐसे रिश्तों के संरक्षण में जरूर आगे आता है. हालांकि, फ्रांस, कनाडा, जापान, अमेरिका और इंगलेंड जैसे देशों की तरह अभी तक हमारे देश में इसपर कोई ठोस कानून नहीं बना है. फिर भी, यह प्रचलन एक खास वर्ग के तबके में बड़ी धड़ल्ले से फल फूल रहा है. बड़े-बड़े शहरों के फ्लैट कल्चर ने इस प्रचलन के लिए उपयुक्त जमीन तैयार कर दी है, जहां ना कोई समाज का बखेड़ा है और ना ही पड़ोसियों की शातिर निगाहों का डर.
आज की युवा पीढ़ी भले ही वेस्टर्न कल्चर की ओर आकर्षित होती है, उसे अपनाती है, किंतु उनके रगों में तो इंडियन कल्चर का ही लहू दौड़ता है. इंडियन कल्चर में ही वह पला बढ़ा होता हैं, अपने बड़े- बुजुर्गों को इसी कल्चर में जीते देखता है तो भला खुद को इससे अलग वह कैसे रख सकता है ? यही वजह है कि वेस्टर्न कल्चर की जिस खुश्बू से मदहोश होकर वे उधर आकर्षित होते हैं कुछ समय बाद उन्हें वहां की उसी खुश्बू के साथ निहित बद्बू का भी आभास होने लगता है और वहां उनका दम घुटने लगता है. फिर बेतहाशा अपने घर की ओर दौड़ पड़ते हैं. ऐसा ही कुछ सोनम और बंटी के साथ भी हुआ था. कुछ वर्षों तक साथ रहने के बाद दोनों की पटरी डगमगाने लगी. लिव इन रिलेशनशिप का फंडा अब उन्हें उबाऊ लगने लगा. सोनम को अब इनसेक्युरिटी का डर सताने लगा. वह बंटी पर शादी का दवाब बनाने लगी, किंतु बंटी अपनी आदत से बाज़ नहीं आया और वह टाल-मटोल करने लगा. वह शादी के बंधन में नहीं बंधना चाहता था. उसे आभास हो गया था कि इसके साथ अब ज्यादा दिन निभाना संभव नहीं है. उसने दूसरी मुर्गी की तलाश शुरू कर दी. जल्द ही उसका रिलेशन सोनिया के साथ सेट हो गया था, जो उसके कॉलेज के दिनों की फ्रेण्ड थी. शादी की तैयारी उधर शुरू हो गई.
इधर बंटी को हाथ से निकलते देखकर सोनम बौखला गई. उसके साथ बंटी ने दगाबाजी की थी. लाईफ पार्टनर बनने का झांसा देकर गजेन्द्र से उसका डायवर्स करवाया था. सोनम के हाथ अब कुछ नहीं बचा था. वह पूरी तरह लूट चुकी थी. वह इतना आगे निकल चुकी थी कि पीछे मुड़ना उसके लिए असम्भव था और इस सफ़र में केवल बंटी ही उसका एक सहारा था. घर-परिवार, नाते-रिश्ते, समाज, दुनिया दारी सबकुछ बहुत पीछे छूट गया था. उसने कभी कल्पना भी नहीं किया था कि ऐसे मोड़ में लाकर उसे बंटी दगा दे देगा. अब उसके पास कोई चारा नहीं था.
उधर बंटी और सोनिया की शादी की तैयारी जोर-शोर से चल रही थी. इधर सोनम की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. समाज के सामने जाकर अब वह अपने हक की गुहार भी नहीं लगा सकती थी. समाज को पहले ही ठेंगा दिखाकर वह आगे बढ़ गई थी. समाज की बातें उसे दकियानुशी लगी थी. समाज उसे आडम्बर का पिटारा लगता था. किंतु, आज उसी की ओर वह लालायित दृष्टि से देख रही थी. मदद की गुहार के लिए तड़प रही थी.      
कोई और चारा नहीं देखकर अंत में उसने बंटी पर यौन शोषण का मुकदमा ठोंक दिया. शादी के दिन पुलिस ने बंटी को मंडप से उठाकर ले गया.
बंटी सलाखों के अंदर बैठे-बैठे आँसू बहा रहा था. पिछली सारी घटनाएँ बार-बार उसकी स्मृतियों में उभरने लगी थी. नई-नई लड़कियों को अपने प्रेम जाल में फंसाना, उनके साथ मौज-मस्ती करना और फिर उन्हें चुइंगम की तरह उगल फेंकना जो उसका लाईफ का फंडा था आज उसी फंडे के जाल में फंसकर बंदा सलाखों के अंदर चला गया था. उसे उसके गुनाहों का फल मिल रहा था.
किंतु, सोनम तो पूरी तरह लूट चुकी थी. उसकी हालत धोबी के कुत्ते की तरह हो गया था, जो न घर का होता है और ना ही घाट का. पश्चाताप की अग्नि में वह तिल-तिल जल रही थी. बंटी के प्यार में पड़कर उसने अपना स्वर्ग-सा जीवन का गला घोंटा था. अपना सर्वस्व लूटाया था. जिसे वह अपना सच्चा प्यार समझ बैठी थी, वह तो मन का वहम था, वह तो मन की मृगतृष्णा मात्र थी. जैसे-जैसे वह उसके करीब गई, उसका मोह भंग होता गया. अपने चिंतन की दुनिया से जैसे ही वास्तविक दुनिया में लौटी, तबतक पार्क में अंधेरा हो चुका था. लोग वहां से जा चुके थे. वहां पूरी तरह सन्नाटा छा गया था. जीवन के इस बेला में उसके अंदर और बाहर सिर्फ और सिर्फ सूनापन था.

                              समाप्त