Wednesday 15 February 2017

khatti mitthi baat

अलबेलिया एक कहानी संग्रह। ज्यादा सोच विचार न करें, मैंने ही लिखी है। कुल बारह कहानियां है इसमें, एकदम कचरस कहानियां,  इसीलिए तो कह रहा हूँ मजा खूब आएगा। कई चीजें है इसमें उन्हीं के बेसिस पर मैं रिकमेंड कर रहा हूँ कि आप भी एक बार इसे जरूर पढ़ें। मजा आए तो govindpandit0304@gmail.com पर एक मेल छोड़ देना और अगर मजा नहीं आए तो…..तो…..तो दोस्त के नाते कह देना “स्साला बकवास किताब लिखी है” ठीक वैसे ही जैसे क़ोई बकवास मूवी देखकर हॉल से लिकलते ही उगल देते हो “एकदम बकवास” । बड़े होने के नाते कह दीजिएगा “बाबू थोड़ी और मेहनत से लिखा करो” और गुरु होने के नाते सारी कमियाँ गिन-गिन कर लिख भेजिएगा।
ये हुई जेनेरल बात मगर अब मैं बताने जा रहा हूँ क़ि अलबेलिया क्यों पढ़ें। इस किताब की ख़ासियत क्या है ? बाकी किताबों से यह अलग क्यों है ? दरअसल न, क्या बताएं क़ि इसकी खासियत क्या है मगर फिर भी दो टूक इसपर बतकही करें तभी तो आप जान पाएंगे कि इसमें क्या खास रखी हुई है। इसकी कहानियां एकदम अलग अलग खेमे से है। अलग अलग धरातल है। अलग अलग परिवेश है , अलग अलग किस्म के पात्र है मगर फिर भी सबमें जो कॉमन बात है वह है इनका जुझारूपन । सभी पात्र अपने हिस्से की जिंदगी में जूझता हुआ नजर आएगा और आपको अहसास कराएगा कि जिंदगी का असली मजा तो जूझने में है न कि हार मानकर बैठ जाने में।
इनकी सारी कहानियां नई हिंदी में लिखी गई है। नई हिंदी मतलब समझते हैं न। आम बोलचाल वाली हिंदी । यहां ना कोई पांडित्य प्रदर्शन है और ना ही कोई लाग लपेट। एकदम सरल सुबोध वाली हिंदी, हंसते हंसते आप इसे ऐसे पढ़ जाइएगा जैसे मूवी देखते वक्त लोग पोपकोर्न रपट लेते हैं । ना शब्दों के अर्थ ढूंढने के लिए आपको किसी हिंदी शब्दकोश की जरुरत होगी और ना ही आपके कपार में क़ोई सिकन आएगा। कहानियों में भाषा की सहजता बनाए रखने के लिए आम बोलचाल में प्रयोग होने वाले अंग्रेजी शब्दों का भी बीच बीच में प्रयोग किया गया है, किन्तु यहां इस बात का ख़ास ख्याल रखा गया है कि हिंदी का अप्रतिम रूप सौन्दर्य विकृत ना हो इसके लिए अंग्रेजी शब्दों को देवनागरी लिपि में ही लिखी गयी है। कुछ लेखक ऐसे भी देखा देखी में उभर कर आ रहे हैं जो अंग्रेजी शब्दों को रोमन लिपि में ही जबरन हिंदी में घुसेड़ रहे हैं और हिंदी के विकृत रूप को नया प्रयोग कहते है। अगर आप ऐसे विकृत हिंदी को पढ़ने की लालच पाले हुए हैं तो यहां आपको थोड़ी निराशा हाथ लगने वाली है।  
नई वाली हिंदी में शब्दों की भोंडापन का भी एक अलग दौर चल पड़ा है । कुछ लोग पाठकों का मनोरंजन अपनी लेखन कला से कहीं ज्यादा अपने शब्दों के भोंडेपन से करना चाहते है,  किन्तु यहाँ आपको किसी भी प्रकार की अनावश्यक शाब्दिक भोंडापन नहीं मिलनेवाला है। हाँ एक बात जरूर है कि कॉलेज के स्टूडेंट्स के वार्तालाप को स्वाभाविक बनाए रखने के लिए कुछ सेमी नानवेज शब्दों का प्रयोग जरूर किया गया है। मगर शब्द भी ऐसे हैं कि आपको ज्यादा अखरेगा नहीं और ना ही किसी प्रकार का आपका मानसिक सिलभंग करेगा।
ये तो हुई आधी बात पूरी बात आपको तब समझ में आयेगी जब आप अलबेलिया की कहानियों को पढ़ेंगे।

चलिए आज के लिए इतना ही बाकी फिर कभी बताएँगे ।

aaj hi order karen - http://amzn.to/2iLRzqL

Wednesday 8 February 2017

सोचबंदी
आजकल देश भर में नोटबंदी का गहमागहमी चल रही है । कुछ लोग इसे सही कदम बता रहे हैं तो कुछ गलत कदम। यह कदम सही है या फिर गलत यह तो राजनीति का विषय है किंतु, इसके पीछे जो ध्येय है वही हमारे लिए सबसे अहम है।
नोटबंदी के पीछे मुख्य ध्येय बाजार में चल रहे जाली नोट एवं काला धन का खात्मा कर एक स्वच्छ अर्थव्यवस्था को स्थापित करना है । यही बात सबसे अहम है। जाली नोटों एवं काला धन से देश की अर्थव्यवस्था में अनेक प्रकार की विसंगतियां आ गई थी जो देश के लिए हानिकारक था इसीलिए नोटबंदी का ऐलान कर उन विसंगतियों को समूल नष्ट करने का प्रयास किया गया है । ये तो हुई राजनीति की बात, मगर मैं यहां राजनीति से इत्तर आत्मनीति की बात करने वाला हूँ ।
आत्मनीति में सोचबंदी एक अहम मुद्दा है । जब हम आत्मनीति अर्थात आत्मविकास की बात करें तो विचार, चिंतन, सोच ही वह मूल है जिसके सहारे हम अपना विकास कर सकते है। किसी भी व्यक्ति के जीवन में उसकी कामयाबी अथवा नाकामयाबी में सबसे अहम रोल उसकी सोच की ही होती है । आप इतिहास के हर पन्नों पर पाएंगे कि अगर कोई व्यक्ति महान बना है तो केवल अपनी सोच की वजह से, अगर किसी के जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन हुआ है तो मात्र उसकी सोच की वजह से, किसी ने अगर आसमान की बुलंदियों को छूआ है तो मात्र अपनी सोच की वजह से। सोच ही तो है जो देश में क्रांति लाती है, सोच ही तो है जिसने मानव को मानव बनाया है ।
अगर इतिहास के पन्नों में झांककर देखें तो हमें साफ़ दिखाई पड़ता है कि तुलसीदास हो या कालिदास वे तबतक सामान्य व्यक्ति थे जबतक कि उनकी सोच नहीं बदली थी। महानता की राह में उनके कदम तब आगे बढ़े जब अपनी पत्नियों द्वारा वे दुत्कारे गए और उसके  बाद उनकी सोच में एकाएक परिवर्तन आ गया । जैसे ही उनकी सोच आम से खास होने लगी वैसे ही उनका व्यक्तित्व भी आम से खास होता गया ।  
इसीलिए सोच या विचार का हमारे सम्पूर्ण व्यक्तित्व पर बहुत गहरा प्रभाव होता है। अब यहां सवाल उठता है कि सोच या विचार तक तो बात ठीक थी किंतु, सोचबंदी का फंडा आखिर में क्या है ?
आइए मैं आपको प्रैक्टिकली समझाता हूं कि सोचबंदी की आवश्यकता क्यों ? विचार को अगर क्लासिफाई किया जाए तो इसे दो वर्गों में रखा जा सकता है – सकारात्मक विचार एवं नकारात्मक विचार। नकारात्मक विचार को तो जितना जल्दी सम्भव हो सके अलविदा कह दीजिए । अब रहा सकारात्मक विचार – इसके भी दो वर्ग हो जाते हैं – आवश्यक सकारात्मक विचार और अनावश्यक सकारात्मक विचार।
अनावश्यक सकारात्मक विचार भी हमारे लिए नुकसानदेह साबित होता है और हमारा बहुमूल्य समय तो नष्ट करता ही है साथ ही, जीवन को भी अव्यवस्थित कर देता है । इसे एक उदाहरण द्वारा समझने का प्रयास करते हैं । मान लीजिए किसी कार्य से आपने अपने रिलेटिव्स, पेरेंट्स, बिलॉव्ड अथवा बोस को नाराज कर दिया हो । सामने वाले की नाराजगी से आप यह तो जान गए हैं कि यह आपकी मिस्टेक्स थी और उसे लेकर आपके मन में खेद भी है । आप जानते हैं कि इसके लिए आपको सामनेवाले से मांफी माँग लेनी चाहिए । यह एक सकारात्मक विचार है । और यह कुछ पल के लिए आवश्यक सकारात्मक विचार है किंतु, आप मांफी मांगने से हिचक रहे होते हैं । अपनी गलती के लिए मांफी मांगने का साहस आपमें नहीं है तो मांफी मांगने का यही विचार आपको परेशान करने लगेगा और आगे चलकर यह अनावश्यक सकारात्मक विचार का रूप धारण कर लेगा, जो आपका समय और मानसिक शांति दोनों को प्रभावित करेगा।
इसीलिए ऐसे अनावश्यक सकारात्मक सोच की बंदी आवश्यक हो जाती है । आप पूरे जोरदार तरीके से अनावश्यक विचारों पर प्रहार करें और मानसिक रूप से उसकी बंदी का ऐलान कर दें। आप जैसे जैसे इस कला में माहिर होते जाएंगे वैसे वैसे आपके व्यक्तित्व में भी निखार आता जाएगा ।      



मेरी कहानी संग्रह - अलबेलिया पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें -http://amzn.to/2iLRzqL

Sunday 8 January 2017



बात जो दिल को छू जाए

बेंगलुरु में 1 जनवरी को घटी घटना से मैं बेहद आहत हूँ । सीसीटीवी केमरे के उस छेड़खानी दृश्य को देखकर मेरा खून तो नहीं खोल रहा है, मगर उसने मुझे अपनी सभ्यता, संस्कृति और बीमार मानसिकता पर गहराई से सोचने पर विवश जरूर किया है । मेरा खून इस बार इसलिए नहीं खोल रहा है क्योंकि मैंने जबरन इसे खोलने से रोका है, और इसे रोकना भी मुझे युक्तिसंगत लगा । दिल्ली के निर्भया कांड के वक्त भी मेरा खून खूब खोला था । मेरे जैसे कई नैजवानों, एवं संवेदनशील व्यक्तियों ने मिलकर, वहां केंडल मार्च निकाला था। सरकार और प्रशासन दोनों एकाएक, हरकत में आ गई थी । आरोपियों को सलाखों के पीछे डाल दिया गया । उन्हें सजा भी सुना दी गई । मगर क्या लड़कियों अथवा महिलाओं के साथ होनेवाली बलात्कार और छेड़खानी जैसी कुत्सित घटनाएं बंद हो गई ? नहीं, आज भी किसी सुनसान गली, मुहल्ले और बीच सड़कों में आए दिन ऐसी घटनाएं घटती रहती है । हर बार खून खोलता है मगर क्या इससे समाज बदल रहा है । समाज की मानसिकता बदल रही है ? केंडल मार्च को देखकर क्या हैवानियत की बीमार मानसिकता रखने वाले उन दरिंन्दों की आत्मा पसीजती है ? उन्हें अपने किए कराए पर पछतावा होता है ? नहीं, ऐसा हरगिज नहीं होता । अगर ऐसा होता तो फिर दिल्ली के उस निर्भया काण्ड के बाद ऐसी घटनाएं समाज में बार बार नहीं घटती ।
हम भी कितने भोले हैं ना । आधी आबादी पर जब कोई दरिंदगी की घटना घटती है तो हम सीधे केंडल मार्च पर निकल पड़ते हैं । क्या इससे हमारे सभ्य समाज में, हमारे ही बीच, हमारे आसपास रहने वाले उन जानवरों पर कोई असर होने वाला है ? कदापी नहीं । जानवरों को केवल उसी की भाषा में समझाया जाना चाहिए तभी उसके भेजे में इनसानियत की बात घूसेगी ।
लड़कियों के साथ हो रही ऐसी घटनाओं पर, मैंने कुछ वर्षों से पैनी निगाह रखी है और उनके तमाम आरोपियों को देखकर मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि ऐसी घटनाओं को अंजाम देने वाले कोई अलग किस्म के आदमी नहीं होते । वे सब हमारे ही बीच के कोई होते हैं । उनकी कोई अलग बिरादरी नहीं होती, कोई अलग दुनिया नहीं होती । सब हम जैसे लोग ही होते हैं । कोई भी इंसान लडकियों या महिलाओं के लिए कुत्सित भावना लेकर मां की कोख से पैदा नहीं होता । उनकी ऐसी विचारधारा हमारे बीच रहकर ही बनती है । और इसकी शुरुआत छोटी छोटी घटनाओं से होती है ।
आपने भी कभी ना कभी बस में, ट्रेन में, मेट्रों में, हाट-बाजार में, मेले में अथवा बीच सड़क पर देखा होगा कि कुछ मनचले अपने आसपास की लड़कियों पर फब्तियां कस रहे होते हैं । और हम चुपचाप उसे इग्नोर कर आगे बढ़ जाते हैं। ऐसी ही छोटी-छोटी घटनाओं से उन मनचलों का हौसला बुलंद होता है और वही आगे चलकर ऐसी हैवानियत घटनाओं को अंजाम देते हैं ।
मेरा आप सभी से अपील है कि अगर आपके आसपास ऐसी कोई भी छोटी मोटी घटनाएं घटती है तो तुरंत ऐसे मनचलों को अपने मुताबिक वहीं सबक सीखा दीजिए ताकि भविष्य में ऐसी हरकत करने से पहले वह हजार बार सोचेगा । मनचलों के खिलाफ़ हम तुरंत एकज़ूट हो जाएं । अगर कोई जान पहचान वाले ऐसी घटनाओं के बारे में आपके सामने जिक्र करता है तो उसके गालों में वहीं एक जोरदार वाला तमाचा रसीद दीजिए । किसी ने ठीक ही कहा है कि अन्याय करने से भी बड़ा पाप चुपचाप अन्याय को सहना है । और इस प्रकार अगर हम मनचलों को सबक सिखाने का दृढ संकल्प कर लेगें तो मैं पूर्ण दावे के साथ कह सकता हूँ कि भविष्य में ऐसी घटनाओं पर स्वतः लगाम लग जाएंगी ।
जय हिन्द जय भारत    

Saturday 7 January 2017



प्रिय पाठकों, आपको यह सूचित करते हुए मुझे बेहद खुशी हो रही है कि साल भर के अथक प्रयास के बाद अब जाकर मेरी तमन्ना पूरी हुई । 1 जनवरी 2017 से मेरी पहली पुस्तक अलबेलिया (कहानी संग्रह) अमेज़न पर ऑनलाइन बुकिंग शुरू हो गई है। इसके लिए मैं वीनस जी का एवं उनकी टीम का आभार व्यक्त करता हूँ।

आप सभी से भी मेरा विशेष अनुरोध है कि आप भी #अलबेलिया को मंगवाकर अवश्य पढ़ें और अपनी प्रतिक्रिया से मुझे अवगत कराएं, ताकि भविष्य में और अच्छी अच्छी कहानियों को गढ़ने में मैं सफल हो सकूँ ।
अमेज़न से यह पुस्तक मँगवाने के लिए क्लिक करें @ http://amzn.to/2iLRzqL
Redgrab से ऑर्डर करने के लिए यहाँ क्लिक करें @ http://redgrab.com/index.php?route=product/product&path=61&product_id=204
और शीघ्र ही फ्लिपकार्ट पर भी उपलब्ध हो जाएगी ।
Motivational लेख के लिए आप विजिट कर सकते है @ www.pravachanom.blogspot.com