Wednesday 24 August 2016

उम्मीदों की कश्ती















टिमटिमाते तारे की रोशनी में
मैंने भी एक सपना देखा है  
टुटे हुए तारे को गिरते देखकर
मैंने भी एक सपना देखा है  
सोचता हूं मन ही मन कभी
काश ! कोई ऐसा रंग होता
जिसे तन-बदन में लगाकर
सपनों के रंग में रंग जाता ।
बाहरी रंग के संसर्ग पाकर
मन भी वैसा रंगीन हो जाता ।
सपनों से जुड़ी है उम्मीदेंपर   
उम्मीदों की उस परिधि को
क्या नाम दूं ? सोचता हूं तो 
मन किसी अनजान भंवर में
दीर्घकाल तक उलझ जाता है।
कोई अनसोची जवाब उभरता
फिर क्षण भर में लुप्त हो जाता है ।   
उम्मीद ही तो वह संजीवनी है
जिसके सहारे सपनों की राह में
आने वाली हर चुनौतियों के आगे
ना कभी मस्तक झुका ना दिल हारा  
उम्मीदों की इसी कश्ती में होकर सवार
मैं सपनों की रंगीन दुनिया ढूंढ निकालूँगा । 

@govind  

No comments: