Saturday, 17 October 2015

मन बार-बार रोता रहा

मन बार-बार रोता रहा
जीने की सूध हर बार खोता रहा,
नयन तो टिकी थी, उसके आने की राह में
पर क्या पता,
 उस राह में कोई नफ़रत के कांटे बोता रहा.
मानता हूं,
एक खता तो हुई थी मुझसे भी, ए जिन्दगी,
किसी के सपने जुड़े थे मुझसे भी, ए जिन्दगी,
पर क्या पता,
पल भर में वह रूठ जाएगी मुझसे भी, ए जिन्दगी.
राह जिन्दगी का यूं बदल लेगी मुझसे भी, ए जिन्दगी.
तड़पकर उसकी याद में,
तलब से मगर, हर बार यादों के दीये जलाता रहा

और दिल को रुलाता रहा, मन को समझाता रहा.